शुरुआती संदेह और तीखी आलोचनाओं के बीच रिलीज़ हुई धुरंधर ने मजबूत बॉक्स ऑफिस आंकड़ों और उससे भी ज्यादा मजबूत जन प्रतिक्रिया के साथ फिल्म इंडस्ट्री को चौंका दिया है। इसने बॉलीवुड में कंटेंट, राजनीति और सत्ता संरचनाओं पर बहस छेड़ दी है।
|
जब धुरंधर की घोषणा हुई, तब फिल्म इंडस्ट्री के कई लोगों ने इसे खास तवज्जो नहीं दी। सिर्फ दो फिल्मों का अनुभव रखने वाले एक निर्देशक को ऐसे सिस्टम में बड़ा बदलाव लाने वाला नहीं माना गया, जहां पहचान बनाने में सालों लग जाते हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, शुरुआती धारणा साफ थी—दो फिल्में बॉलीवुड की स्थापित व्यवस्था को नहीं हिला सकतीं। लेकिन धुरंधर की प्रतिक्रिया ने इस सोच को अप्रत्याशित तरीके से चुनौती दी। रिलीज़ के छह दिनों के भीतर ही फिल्म ने भारत में लगभग ₹180 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया और पहले हफ्ते के अंत तक यह ₹200 करोड़ की ओर बढ़ती दिखी। इंडस्ट्री ट्रैकिंग रुझानों के मुताबिक, इसका वर्ल्डवाइड कलेक्शन भी लगातार ₹300 करोड़ के करीब पहुंच रहा है। ट्रेड विश्लेषकों को चौंकाने वाली बात सिर्फ कुल कमाई नहीं, बल्कि उसकी निरंतरता रही। फिल्म के पांचवें और छठे दिन का कलेक्शन लगभग पहले दिन के बराबर रहा, जो यह दर्शाता है कि यह सिर्फ ओपनिंग डे पर निर्भर फिल्म नहीं है, बल्कि दर्शकों की दिलचस्पी लगातार बनी हुई है। आंकड़ों से आगे की कहानीहालांकि बॉक्स ऑफिस आंकड़े अक्सर सुर्खियां बनाते हैं, लेकिन धुरंधर की चर्चा सिर्फ कमाई तक सीमित नहीं रही। फिल्म का कंटेंट इसलिए ध्यान खींच रहा है क्योंकि यह कुछ संवेदनशील ऐतिहासिक और राजनीतिक घटनाओं को सिनेमा के जरिए सामने लाता है। हालिया घटनाक्रमों के अनुसार, इस अप्रोच ने इंडस्ट्री के भीतर मतभेद पैदा किए हैं, लेकिन दर्शकों के बीच इसे मजबूत समर्थन मिला है। रिलीज़ से पहले फिल्म को जिस तरह की नकारात्मक चर्चा का सामना करना पड़ा, वह भी अब बहस का विषय बन गई है। कुछ विश्लेषकों ने निर्देशक के अनुभव, फिल्म के बजट और यहां तक कि लीड कलाकारों की बॉक्स ऑफिस क्षमता पर सवाल उठाए। लेकिन जैसे ही दर्शकों ने फिल्म देखनी शुरू की, बातचीत का फोकस बदल गया। बजट और स्टार पावर की जगह अब कहानी, यथार्थ और उद्देश्य पर चर्चा होने लगी। कंटेंट बनाम कम्फर्ट ज़ोनइस बहस के केंद्र में फिल्म में दिखाए गए वास्तविक घटनाक्रम हैं। बताया जाता है कि फिल्म में गैंग संघर्ष, एक बड़े हाईजैक कांड और 26/11 मुंबई आतंकी हमलों जैसे प्रसंग शामिल हैं। ये सभी घटनाएं दर्ज इतिहास का हिस्सा हैं, जिनके समर्थन में आधिकारिक रिकॉर्ड, मीडिया कवरेज और सार्वजनिक स्मृति मौजूद है। फिर भी, इन्हें वास्तविक संदर्भों और विजुअल एलिमेंट्स के साथ दिखाने का फैसला इंडस्ट्री के कुछ हिस्सों को असहज कर गया। कुछ आलोचकों का मानना है कि ऐसी प्रस्तुति सिनेमा को राजनीति की ओर ले जाती है। वहीं, दूसरी ओर यह तर्क दिया गया कि इतिहास में दर्ज घटनाओं को दिखाना अपने आप में राजनीतिक प्रचार नहीं बन जाता। इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के अनुसार, असहजता तथ्यात्मक गलतियों से ज्यादा चुनिंदा सच्चाइयों को दिखाने वाले पुराने नियमों के टूटने से जुड़ी है। बॉलीवुड के भीतर प्रतिक्रियाएंयह बहस तब और तेज हो गई जब जासूसी फिल्मों से जुड़े एक प्रमुख अभिनेता की टिप्पणी सामने आई। शुरुआत में उनकी ओर से फिल्म की सफलता पर दी गई बधाई को दर्शकों ने सकारात्मक रूप से लिया। खासकर इसलिए क्योंकि कई लोगों को लग रहा था कि बड़े सितारे फिल्म के समर्थन में खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं। उनके बयान का वह हिस्सा, जिसमें कहा गया कि सिनेमा को खास बनाने में स्टार नहीं बल्कि कहानी अहम होती है, काफी सराहा गया। हालांकि, बाद के हिस्से में फिल्म की कथित राजनीतिक परतों और फिल्ममेकर्स की जिम्मेदारी पर उठाए गए सवालों ने कई दर्शकों को भ्रमित कर दिया। सोशल मीडिया प्रतिक्रियाओं से यह झलकता है कि लोग यह समझ नहीं पाए कि तथ्य आधारित कहानी को अचानक विवादास्पद क्यों माना जा रहा है। दर्शकों की आवाज़ और इंडस्ट्री की ताकतदिलचस्प बात यह है कि जहां बॉलीवुड के भीतर बहस तेज रही, वहीं रिपोर्ट्स के मुताबिक धुरंधर को पड़ोसी देशों, खासकर पाकिस्तान में भी अच्छी प्रतिक्रिया मिली। सोशल मीडिया पर वायरल हुए कई रिएक्शन वीडियो में वहां के दर्शक फिल्म की कहानी से जुड़ते नजर आए। इस विरोधाभास ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है—जो फिल्म बाहर सराही जा रही है, उसे अपने देश में इतनी कड़ी जांच का सामना क्यों करना पड़ रहा है? फिल्म ट्रेड से जुड़े जानकारों का मानना है कि इसकी वजह फिल्म की वह क्षमता है जो बॉलीवुड की लंबे समय से चली आ रही सत्ता संरचना को चुनौती देती है। इंडस्ट्री पर असरमौजूदा रुझानों के अनुसार, फिल्म का प्रदर्शन बजट, स्टार डिपेंडेंसी और रचनात्मक स्वतंत्रता को लेकर बनी पुरानी धारणाओं को बदल सकता है। सालों से मास और एलीट सिनेमा के बीच एक अदृश्य खाई रही है, जो भाषा, वर्ग और पहुंच से जुड़ी है। धुरंधर इन सीमाओं को धुंधला करती नजर आती है और एक व्यापक दर्शक वर्ग तक पहुंच बनाती है। इंडस्ट्री विश्लेषकों का कहना है कि ऐसी फिल्मों को हतोत्साहित करने या जरूरत से ज्यादा आलोचना करने की कोशिश उलटा असर डाल सकती है। आगे क्याआने वाले दिनों में वीकेंड कलेक्शन पर सभी की नजर रहेगी। फिल्म ₹400 करोड़ पर रुकेगी या उससे आगे जाएगी, यह अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन इतना साफ है कि धुरंधर ने हिंदी सिनेमा में यह बहस छेड़ दी है कि कहानियों पर नियंत्रण किसका है और असहज सच्चाइयों को दिखाने की कितनी गुंजाइश दी जाती है। बॉलीवुड के लिए धुरंधर सिर्फ एक व्यावसायिक सफलता नहीं है, बल्कि यह बदलती दर्शक सोच का संकेत भी है, जिसे नजरअंदाज करना अब आसान नहीं होगा। |
